Thursday, September 8, 2011

वृन्दावन के वृक्ष को मरहम न जाने कोय,
यहाँ डाल डाल और पात पात श्री राधे राधे होय।

वृन्दावन की छवि प्रतिक्षण नवीन है। आज भी चारों ओर आराध्य की आराधना और इष्ट की उपासना के स्वर हर क्षण सुनाई देते हैं। कोई भी अनुभव कर सकता है कि वृन्दावन की सीमा में प्रवेश करते ही एक अदृश्य भाव, एक अदृश्य शक्ति हृदय स्थल के अन्दर प्रवेश करती है और वृन्दावन की परिधि छोड़ते ही यह दूर हो जाती है।



जिसके ह्रदय में दूसरे का हित बसता है,उनको जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है
जो अपने जैसा दूसरों को भी सुखी देखने की कामना रखते है,उनके पास रहने
से विद्या प्राप्त होती है और अज्ञान का अंधकार दूर होता है राधे-राधे

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